बाल कविता : डॉ. नागेश पांडेय 'संजय'
कुहू-कुहू सुन, कुहू-कुहू कर
बच्चे भागे सारे।
लगे बुलाने, कोयल बहना !
आ रे, आ रे, आ रे।
कोयल ने तब कहा रूठकर,
भरम नहीं फैलाओ।
मैं तो कोयल भैया हूँ जी,
ऐसे नहीं चिढ़ाओ।
गाता मैं हूँ पर सब कहते,
कोयलिया है गाती।
ऐसा झूठ बोलते सबको,
लाज नहीं क्यों आती ?
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