हाँ , मैं बन्दर हूँ
राजू अपने दोस्तों के साथ खेल रहा था .
उसकी आँखों पर पट्टी बँधी थी.
सारे बच्चे ही-ही , हो- हो करते
खुद को उससे बचाकर खुश हो रहे थे .
अचानक राजू ने मोनू को पकड़ लिया .
सारे बच्चे हँसे -" हो, हो ,हो . मोनू तुम पकडे गए .
अब जल्दी से आँखों पर पट्टी बाँधो . बनो चोर ".
बेचारा मोनू .
वह चिढकर बोला - "पकड़ ही लिया बन्दर ने . "
अब क्या था , बच्चे और जोर से हँस पड़े -
" राजू ... तुम बन्दर .तुम बन्दर हो . "
मगर राजू , वह बिलकुल नहीं चिढ़ा .
चहक कर बोला - "हाँ , हाँ . मैं बन्दर हूँ .
मगर हूँ गाँधी जी का बन्दर .
और ... ये ? ... ये तो मदारी का बन्दर है .
चल बाँध जल्दी से पट्टी . "
मोनू चुपचाप आगे बढ़ा .
खेल फिर शुरू हो गया .
2 टिप्पणियां:
सुंदर बाल कथा ...
बहुत अच्छी प्रस्तुति है!
रक्षाबन्धन के पावन पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएँ!
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