ये सर्दी की धूप ,कहो जी
किसे न भाती है ?
सुबह- सवेरे , इसे देखकर
खिल उठता है मन .
सभी प्रफुल्लित होकर करते ,
इसका अभिनंदन .
सबको लाड़ -दुलार ख़ुशी से ,
खूब लुटाती है .
कोहरा-पाला इसे देखकर ,
होते छू-मंतर .
छोड़ रजाई होने लगती
घर में खटर-पटर .
सबको करती दंग , भंग में
रंग जमाती है .
लगती बिलकुल गरम- ये ,
बालूशाही-सी .
मनभावन मक्खन-सी , भीनी
मधुर मलाई-सी .
कैसे- कैसे स्वाद याद यह ,
हमें दिलाती है !
चित्र साभार : गूगल सर्च
5 टिप्पणियां:
बहुत ही प्यारा गीत है। हार्दिक बधाई।
ब्लॉग का लेआउट भी प्यारा है।
समय मिले, तो निम्न पोस्ट को अवश्य देखें-
कावेरी भूत और उसका परिवार।
मासिक धर्म और उससे जुड़ी अवधारणाएं।
प्यारी कविता ....
सरस चर्चा में देखिए!
सर्दी की धूप पर अच्छा बालगीत
सचमुच.. सर्दी की धुप किसे ना भाती ?
बहुत प्यारी कविता..
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