'हरिभूमि (बाल भूमि) में 3 मई 2018 को प्रकाशित |
शाबाश केतन
डा. नागेश पांडेय ‘संजय’
बारह साल में यह पहला मौका था जब केतन अपनी मां से दूर कहीं और आया था। उसे रह-रह कर मां की याद आ रही थी। ऐसा नहीं कि मामा के घर उसे कोई तकलीफ थी लेकिन फिर भी बात यही थी कि उसे अच्छा नहीं लग रहा था।
गर्मी की छुट्टियां थीं। मामा ने बहुत कहा तो मां ने उसे साथ भेज दिया। केतन ने कहा भी था-‘न मामा, मुझे तो मां की बहुत याद आएगी।’ मामा हंसे थे-‘...और जब तुम्हें मां की याद आए, तुम दो बार मां, मां कहना। बस, मैं तुरंत हाजिर हो जाऊँगा।’
मां भी चहक पड़ी थीं- ‘और क्या बेटे, मैं तो बस मां हूं लेकिन मामा में तो देखो, दो बार मां आता है।’ फिर मां ने समझाया था-‘देखो, अब बड़े हो चुके हो। पूरे बारह के। कहीं आना जाना नहीं सीखोगे तो...।’
‘हां, हां मां, मैं समझ गया।’ केतन बीच में ही बोल पड़ा था। वैसे भी उसे मामी और पुष्कर भैया, निखिल भैया से मिले भी काफी समय हो गया था। शिवम अंकल की शादी में सब इकट्ठे हुए थे। कितना मजा आया था। खूब धमा चौकड़ी की थी। कितना नाचे थे। खाने की तो सुध ही न रही थी। जयमाल पड़ जाने के बाद सब खाने पर पहुंचे थे। आधे आइटम तो खत्म ही हो गए थे। न चाउमीन न डोसा। बुआ के बेटे आदू का तो पेट ही खराब हो गया था। सब बता रहे थे कि उसने एक-एक कर पूरे पांच डोसे खाए थे। अगले दिन सबने उसे खूब चिढ़ाया था-
आदू भाई, आदू भाई
तुमने दावत खूब उड़ाई।
यों तो आए दिन मामा-मामी और पुष्कर भैया, निखिल भैया से फोन पर बात तो होती ही रहती थी। वाट्सएप पर खूब वीडियो कालिंग भी करते थे। पर साथ बैठ बतियाने की तो बात ही कुछ और है न?
मामा ने ज्यादा कहा और मां ने भी हामी भर दी तो केतन चला आया। सफर में कोई छह घंटे लगे होंगे। मामा ने पूरा ख्याल रखा। पहुंचा तो जबरदस्त वेलकम हुआ लेकिन फिर मां की याद आना शुरू हुई तो सब फीका लगने लगा।
केतन ने मां से वीडियो कालिंग की। मां ने पूछा-‘ठीक से पहुंच गए न ?’
और थोड़ी ही देर बाद केतन ने फोन मामी को दे दिया। उसे लग रहा था कि वह रो पड़ेगा। ...मामी उसकी मंशा जैसे समझ गईं थीं। उन्होंने कुछ देर तक बात करने के बाद फोन रख दिया। वे केतन से बोलीं-बेटे, तुम थक गए होगे। थोड़ा सो लो। फिर शाम को मामा तुम्हें घुमाने ले जाएंगे।
मामी ने केतन के माथे पर पियानो बजाने की स्टाइल में अंगुलियां क्या फिराईं, केतन तो नींद के आगोश में जा पहुंचा। शाम को कोई चार बजे उसकी आंख खुली। निखिल भैया बड़े मजे से फर्श चमकाने में लगे थे।
केतन हंस पड़ा-‘अरे! तुम यह काम कर रहे हो?’
‘हां, तो तुम घर का काम नहीं करते क्या?’
‘ना, मैं भला ये क्यों करूंगा?’ केतन ने थोड़ा हेकड़ी से उत्तर दिया। उसके उत्तर में थोड़ा उपहास भी छिपा था।
‘निखिल भैया कहां हैं?’
‘किचन में।’
‘किचन में !’ केतन एक बार फिर चौंका। ‘वहां क्या कर रहा है?’
‘तुम खुद ही जाकर देख लो।’
केतन ने वहां जाकर देखा, मामी किचन में अप्पे बना रहीं थीं। पुष्कर भैया उनकी मदद कर रहे थे।
‘अरे! तुम यहां हो?’
केतन को आया देख मामी ने पुष्कर से कहा-‘जाओ, बेटे। तुम इसके साथ खेलो जाकर। यहां सब हो जाएगा।’
पुष्कर उसे लेकर कमरे में चल दिया-‘कैरम खेलोगे?’
‘हां, बिल्कुल।’
तब तक निखिल भी आ गया। खेल शुरू हो गया। गोटियों की खट-खट गूंजने लगी।
किचन से मामी की आवाज आई- ‘पुष्कर, चटनी में नमक तो डाला था न?’
‘हां, मम्मी। एकदम कंप्लीट है। आप बस अप्पे तैयार कर लो। फिर साथ-साथ खाते हैं।’
केतन की चाल थी लेकिन वह भौचक सा पुष्कर का मुंह ताक रहा था।
‘क्या हुआ प्यारे?’
‘चटनी तुमने बनाई है?’
‘हां, और क्या? आम और पुदीने की चटनी है। खाओगे तो याद करोगे?’
‘और... ये अप्पे क्या होता है?’
‘आज पहली बार बन रहा है। मैंने कल ही यू ट्यूब पर ये नया नाश्ता खोजा है। हम सब आज पहली बार इसका स्वाद लेंगे।’
‘ हम लोग बाजार की चीजें कम ही खाते हैं। बस, मिल जुलकर सारी चीजें घर पर ही तैयार कर लेते हैं।’
‘वा....ह!’
केतन चकराया सा हमउम्र दोनों भाइयों को ताक रहा था। वह तो बस मोबाइल में गेम खेला करता था। और भला किचन या घर के कामों से उसका क्या काम? मां खुद ही सारे काम करती हैं। सुबह चार बजे उठती हैं। फिर रात को दस बजने से पहले उनकी छुट्टी कहां होती है? कैसे थककर चूर हो जाती हैं बेचारी। उसने तो आज तक मां के किसी काम में हाथ नहीं बटाया। यहां तक कि वह कहीं भी अपने कपड़े डाल देता है। कहीं भी बस्ता। मां हर समय फैलाव ही ठीक करती रहती हैं। कालबेल बजने पर दरवाजा भी मां ही खोलने जाती हैं। उसे कुछ चाहिए होता है तो बस हुक्म देता है-मां, यह ले आना। मां, वह ले आना। और बेचारी मां, वे भी तो हंसते-हंसते उसे सब कुछ हाथ में ही लाकर देती हैं।
निखिल ने केतन को हिलाया-‘क्या सोचने लगे? अपनी चाल चलो भाई।’
केतन अनमना था। कैरम की बिखरी गोटियों को समेटते हुए बोला-‘खेल में मन नहीं लग रहा।’
‘क्यों, घर की याद आ रही है?’
‘हां, मां की याद....।’
तब तक मामा आ गए। हंसकर बोले- ‘तो बोलो न मां, मां।’
मामी भी नाश्ता लेकर आ गईं। पुष्कर और निखिल उसे प्लेट में रखने लगे। केतन ने अप्पे देखकर आंखे बड़ी कीं-‘अरे! ये तो बिल्कुल गोलगप्पों की तरह हैं!’
फिर केतन ने मामा से कहा-मामा, मां से बात कराओ न प्लीज!
‘हां, अभी लो।’ और मामा ने तुरंत मां को वीडियो काल लगा दी। जल्दी ही स्क्रीन पर मां प्रगट हुईं-‘कैसा है रे?’
‘मैं ठीक हूं मां। नाश्ता करने जा रहा हूं।’ थोड़ा रुककर केतन ने पूछा-‘आपने नाश्ता किया मां?’
‘अभी तो नहीं बेटे। थोड़ा काम है, उसे निबटा लूं फिर...।’
केतन को लगा कि वह मोबाइल पर ही मां को प्यार कर ले। कहे उनसे- मां, देखना वापस आने पर मैं आपका कितना ख्याल रखूंगा। पुष्कर और निखिल की तरह मैं भी...। ...लेकिन केतन कुछ बोला नहीं। बस, उसके ओंठ हिलकर रह गए।
‘क्या है केतन ? क्या कह रहा है? आवाज नहीं आ रही?’
‘कुछ नहीं मां, ...आपके लिए मैंने एक गिफ्ट सोचा है।’
‘गिफ्ट! ...अच्छा क्या? बता तो भला?’
‘बताऊँगा नहीं मां, जब वापस आऊँगा तब देखना। ...बस...।’
मां उसे निहारती रह गईं। तब तक मामी ने अप्पे उठाकर केतन के मुंह में रख दिया। हंसते हुए बोलीं-‘बाकी बातें ब्रेक के बाद...।’
सब नाश्ता करने लगे।
मोबाइल पर मां के चेहरे की चमक साफ दिख रही थी।
...और केतन का तो मन ही दमक उठा था।
(कहानी हरिभूमि, दिल्ली में 3 मई 2018 को प्रकाशित )
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