सुंदरवन के पूरब में था एक छोटा सा घर। घर में रहता था टोनू खरगोश और उसका छोटा सा परिवार। परिवार में पता है कौन-कौन था? टोनू की पत्नी और उसके दो बच्चे। बच्चों के नाम थे टिंकू और रिमझिम। टिंकू बड़ा और रिमझिम छोटी थी।
रिमझिम छोटी जरूर थी मगर थी दिलेर। सब उसके साहसी स्वभाव की तारीफ करते। हां, टिंकू था नंबर एक का अंधविश्वासी और डरपोक। कहीं जरा सी आवाज भी क्या होती कि जा दुबकता मम्मी के पास। डर उसमें कूट-कूट कर भरा हुआ था।
तो एक बार की बात है। मम्मी-पापा किसी काम से बाहर गए हुए थे। घर पर टिंकू और रिमझिम अकेले थे। शाम हो रही थी और मम्मी-पापा अभी तक वापस नहीं लौटे थे। यों वे कहकर गए थे कि षाम होने से पहले ही लौट आएंगे। धीरे-धीरे रात घिर आई। घुप्प अंधेरा छा गया। सुंदरवन में आज बिजली भी नहीं आई थी। टिंकू को डर लगने लगा। वह कांपते हुए रिमझिम से बोला-
अंधकार छाया जमकर,
और अकेले हम घर पर।
कहीं आ गया भूत अगर,
हाय! लग रहा मुझको डर।
रिमझिम ने टिंकू की हिम्मत बंधाई-
डरो न भैया! डरो न भैया!
डरने की कुछ बात नहीं।
भूत-वूत कुछ भी न होता,
यूं घबड़ाओ आप नहीं।
मैं तो कितनी छोटी पर,
मुझे न लगता बिल्कुल डर।
रिमझिम की बात पर टिंकू थोड़ा गुस्से से बोला-
तू पगली है क्या जानें,
भूत-वूत को क्या मानें।
भूत अकेले में आते,
मार डालते-ले जाते।
हाय! कहीं जो आया भूत?
क्या होगी उसकी करतूत!
टिंकू की बात पर रिमझिम मन ही मन हंसी। उसने दोबारा समझाया-
बीता जो कहलाता भूत,
बीता क्या फिर आता है?
वर्तमान की बात करो जब
वर्तमान से नाता है।
बढ़िया-बढ़िया बातें कर,
सो जाएं हम खा-पीकर।
हो सकता है कुछ पल में
मम्मी-पापा आ जाएं,
लेकिन क्या यह अच्छा है?
बेमतलब हम घबड़ाएं?
तुम बैठो, मैं जाती हूं,
अभी किचन से आती हूं।
लेकर के बढ़िया खाना,
खाना खाना सो जाना।
रिमझिम किचन में चली जाती है। उसके समझाने का टिंकू पर कोई असर नहीं पड़ता। वह भगवान की मूर्ति के आगे हाथ जोड़कर कहता है-
क्या होगा अब हे भगवान?
है मुश्किल में अपनी जान।
रक्षा करना भूतों से,
भूतों की करतूतों से।
घर में चोरी करने के इरादे से बाहर खड़ा कड़कू सुअर सारी बातें सुन रहा होता है। इधर रिमझिम किचन से खाना लेकर आती है और कड़कू सुअर कालबेल बजाकर गुर्राता है-
हो हो हो मैं आया भूत,
बड़े-बड़े भूतों का दूत।
आया हूं यमलोक से,
अभी मारता तुम दोनों को,
मैं भाले की नोक से।
खोल गेट, अंदर आऊँ,
तुम दोनों को खा जाऊँ।
बस, फिर क्या था। बेचारा टिंकू, उसकी तो कंपकपी ही छूट जाती है। जिसका डर था, वही हो गया।
उसने रोते हुए प्रार्थना की-
हाय भूत जी जाओ तुम,
गेट नहीं खुलवाओ तुम।
हाय न तुम अंदर आओ,
अरे! तरस कुछ तो खाओ।
भूत बना सुअर डरावनी हंसी हंसते हुए कहता है-
तरस नहीं मैं खाता हूं,
मैं तो मांस चबाता हूं।
पीता खून, फोड़ता पेट,
खोलो-खोलो जल्दी गेट।
टिंकू की घिघ्घी बंध जाती है। रिमझिम धीरे से उसके कान में कहती है- भैया! मत डर। जरूर दाल में कुछ काला है। मैं कुछ करती हूं।
रिमझिम ने दरवाजे के पास जाकर कांपते हुए बोली-
हाय! भूत जी, मानो तुम,
हमको बच्चा जानो तुम।
हमें छोड़ जो भी चाहो,
उसको फौरन ले जाओ।
भूत बना कड़कू चोर चहक कर तुरंत बोल उठा-
तुम दोनों ही बच्चे हो,
दोनों बच्चे अच्छे हो।
अच्छा, तुम्हें न खाऊँगा,
पर रुपया ले जाऊँगा,
सूटकेस रुपयोंवाला,
मुझको झट दे जाओ तुम,
अपनी जान बचाओ तुम।
टिंकू ने जब भूत की दया भरी बातें सुनीं तो खुश हो गया। जल्दी से सूटकेस उठाने चला। रिमझिम ने उसे रोका-
रुक भैया! कुछ गड़बड़ है,
ये सब तेरी हड़बड़ है।
मुझे हो रहा है आभास,
है कोई यह ठग-बदमाश ।
जाती हूं छत के ऊपर,
इसको मारूंगी पत्थर।
रिमझिम के चलते ही टिंकू जोर-जोर से रोने लगता है-
रुक जा रिमझिम,
रुक, मत जा,
भूत क्रोध में आएगा,
अभी हमें खा जाएगा।
तू मेरी प्यारी बहना,
हाय! मान भी ले कहना।
भूत बना कड़कू सुअर समझता है कि टिंकू रिमझिम को सूटकेस लाने से रोक रहा है। उसे और गुस्सा आ जाता है। वह दांत पीसता है-
मूर्ख इसे तू आने दे,
सूटकेस दे जाने दे।
सूटकेस यदि पाऊँगा,
तो तुमका ना खाऊँगा।
रिमझिम टिंकू को लेकर जल्दी से छत के ऊपर पहुंचती है। उसे चुप रहने को कहकर एक पत्थर का टुकड़ा उसकी ओर फेंकती है। पत्थर कड़कू सुअर के सिर पर लगता है। वह दर्द से तड़प उठता है-
हाय! मर गया, हाय मरा,
फूट गया सर हाय मरा।
अरे! बचाओ, जल्दी आओ,
अस्पताल मुझको ले जाओ।
उसी वक्त गश्त लगाते इंस्पेक्टर हाथी दादा अपने सिपाहियों के साथ वहां आ पहुंचते हैं। कड़कू चोर को देखते ही वे समझ जाते हैं कि ये यहां क्यों आया होगा। तुरंत उसे पकड़ लेते हैं।
सारी बात जानकर वे बहुत खुश होते हैं। रिमझिम को शाबासी देते हैं। टिंकू को समझाते हैं-बेटे! कभी भी अंधविश्वास मत करो। भूत होते ही नहीं। डर का नाम ही भूत है। डर भगाओ, भूत भाग जाएगा।
बात टिंकू के समझ में आ जाती है। वह कहता है-
दादा बात आपकी ठीक,
जो बच्चे होते निर्भीक।
वे कुछ कर दिखलाते हैं,
वे ही नाम कमाते हैं।
कहता हूं मैं सीना ठोक,
नहीं रहूंगा अब डरपोेक।
तब तक मम्मी पापा आ जाते हैं। सारी बात सुन वे फूले नहीं समाते। वे हाथी दादा को भी धन्यवाद देते हैं। हाथी दादा कड़कू सुअर को लेकर चले जाते हैं।
सभी घर में घुसते हैं।
अचानक खट की आवाज होती है। टिंकू चौंककर पूछता है- कौन?
मैं हूँ भूत का दूत -रिमझिम डरावनी आवाज में बोलती है।
धत, यह तो रिमझिम की आवाज है अब नहीं डरने वाला मैं....
सब हंस पड़ते हैं।
चम्पू शैली की यह बाल कहानी अमर उजाला रविवासरीय परिशिष्ट में 13.10.96 को प्रकाशित हुई थी. यह लेखक की बाल कहानियों की पुस्तक 'भाग गये चूहे ' (1997) में भी संकलित है.
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