इन्द्रधनुषी बाल कहानियां
संपादक : डा. नागेश पांडेय 'संजय '
प्रकाशक : अर्जित पब्लिशर्स , ४३- अमीनाबाद रोड, लखनऊ
मूल्य २५०/-
इस संकलन में अलका पाठक ,विनय कुमार मालवीय ,राष्ट्रबंधु, शशिभूषण बडोनी, रावेंद्रकुमार रवि, दामोदर अग्रवाल, गोपाल दास नागर, राम निरंजन शर्मा ठिमाऊँ ,सरज मृदुल,क्षमा शर्मा ,शकुंतला कालरा ,श्याम सिंह शशि, शशि गोयल, नीलम राकेश, बुलाकी शर्मा , रामदरश मिश्र ,रोहिताश्व अस्थाना , राजीव सक्सेना , से. रा. यात्री, देशबंधु, भगवती प्रसाद दिवेदी, श्रीप्रसाद , उषा यादव, अरशद खान, रमाशंकर, अखिलेश श्रीवास्तव चमन, पद्मा चौगांवकर, मालती बसंत ,साजिद खान, अमिताभ शंकर राय चौधरी, अनंत कुशवाहा , अमर गोस्वामी, दिनेश पाठक शशि , निर्मला सिंह , श्यामला कांत वर्मा , नागेश पांडेय संजय,ज़ाकिर अली ’रजनीश’, राम वचन सिंह आनंद, चन्द्रपाल सिंह यादव 'मयंक' तथा विष्णु प्रभाकर आदि प्रख्यात लेखकों की ४० अलग-अलग रूपों की बाल कहानियां हैं.
इन्हें पढ़कर बच्चे बाल कहानियों के विभिन्न भेदों जैसे वयगत , उद्देश्यगत, रचनागत, विषयगत, शैलीगत : आत्मकथा शैली, संस्मरण शैली, चम्पू शैली, पत्र शैली,डायरी शैली, पद्य कथा शैली,संवाद शैली, कहावत शैली को सहजता से समझ सकेंगे .
27 टिप्पणियां:
जाकिर जी , २००७ में प्रकाशित 'बालिकाओं की श्रेष्ठ कहानियां' पुस्तक की जिस कहानी 'सुन्दर कौन' की ओर आपका संकेत है , वह हिंदी के लगभग तीन दशक पुराने बाल साहित्यकार रावेन्द्र कुमार रवि की (अमर उजाला के 'बच्चों का पन्ना' में प्रकाशित)22 साल पुरानी रचना है. तब तो आपने लेखन भी आरम्भ नहीं किया था . फिर.. वह आपकी कहानी 'सच्ची सुंदरता' की 'कॉपी' जैसी कैसे हो सकती है ?
रावेन्द्र कुमार रवि की कहानी को इसी मौलिकता के आधार पर प्राथमिकता के साथ प्रकाशित किया गया. उसके कमजोर या मजबूत होने की बात तो फ़िलहाल पाठक ही तय कर सकते हैं .
धन्यवाद, नागेश जी!
आपका कहना बिल्कुल सही है!
मेरी यह कहानी आपने बहुत पहले अमर उजाला में ही बीस साल पहले पढ़ी होगी!
सही तिथि अभी बता पाना संभव नहीं है,
क्योंकि पुराने पत्र-पत्रिकाएँ शाहजहाँपुर में रखे हैं
और अब दीपावली से पहले मेरा शाहजहाँपुर आना संभव नहीं है!
--
शायद आपको ध्यान होगा कि रजनीश जी की कहानी पढ़कर मैंने आपसे यह कहा था कि इन्होंने मेरी कहानी की नकल मार रखी है!
उसके बाद मैं इस बात को भूल गया,
पर अब उपरोक्त दोनों टिप्पणियाँ पढ़कर याद आ गई!
कल दीपावली पर शाहजहाँपुर पहुँचा!
खोजने पर वह अख़बार मिल गया, जिसमें चर्चित कहानी प्रकाशित हुई थी!
६ सितंबर १९८७ को "अमर उजाला के बच्चों का पन्ना" में
यह कहानी "सोना और रूपा" शीर्षक से प्रकाशित हुई थी!
इसकी फ़ोटो प्रति मैंने डॉ. नागेश को ईमेल से उपलब्ध करा दी है!
आज दोपहर डॉ. नागेश मेरे घर आए थे
और लगभग २४ साल बाद इस अखबार का पुनः अवलोकन कर बहुत खुश हुए!
इस संबंध में डॉ. नागेश द्वारा टिप्पणी के माध्यम से कही गई सभी बातें सही हैं!
जाकिर भैया!
रावेन्द्र कुमार रवि ने मुझको ६ सितंबर १९८७ की "अमर उजाला के बच्चों का पन्ना" की कटिंग दिखा दी है! उसमें यह कहानी "सोना और रूपा" शीर्षक से प्रकाशित हुई थी!
अब क्या यह समझा जाए कि आपने ही उनकी थीम को लेकर पिष्टपेषण किया है।
अब प्रमाण है तो यह कमेंट कर रहा हूँ। अगर प्रमाण नहीं होता तो रवि जी को ही कहता कि उन्होंने आपकी कथा चुराई है!
--
नागेश जी को पुस्तक के प्रकाशन पर शुभकामनाएँ!
डॉ. नागेश जी,
ऐसा क्यों है कि बाल कहानियों के पढ़ने से पहले ही टिप्पणियों से उपजे विवाद में आनंद आने लगा है.. अब तो जरूर कहानियों को पढ़ने की इच्छा हो रही है.
जो चीज कंट्रोवर्सी में उलझती है... वह पापुलर तो होती ही है साथ ही पाठक उसमें कथा के अलावा कुछ और भी तलाशने लगता है... यथा .. 'व्यक्तियों के चरित्र'..
मौलिकता के रेपर में चाटी गयी झूठी टोफियाँ बाँटना सरासर विश्वासघात है.
मैं शीघ्र ही इस कहानी को "सरस पायस" पर प्रकाशित करूँगा!
टिप्पणी को पढकर बहुत मजा आया!
मुझे तो लगता है की ये पोस्ट टिप्पणी के कारण ज्यादा और भी बेहतर हो गया है|
सुप्रभात!
भूल को स्वीकार करने से
कोई छोटा नहीं हो जाता है!
--
जाकिर जी सहजभाव से
अपनी भूल स्वीकार कीजिए ना!
जाकिर भाई को उनके द्वारा मांगी गयी मूल प्रति तीन बार मेल कर चुका हूँ . तथाकथित कहानी को लेकर उनके उत्तर की प्रतीक्षा है.
नक़लची कौन ?दिलचस्प विवाद है यह .असलियत सामने तभी आएगी जब दोनों कहनियों को आप इस ब्लॉग पर डाल दें .दूध का दूध और पानी का पानी होना ही चाहिए .
'इंद्रधनुषी बाल कहानियां 'का कलेवर रचनाओं का चयन ,प्रस्तुतीकरण व संपादन अद्भुत है।बधाई।
अरविंद पथिक
जाकिर जी, अपनी कहानी 'सच्ची सुंदरता'के प्रकाशन की छायाप्रति उपलब्ध कराने का कष्ट करें।
....
चंदन भारत जी की टिप्पणी को पढ़कर बहुत मज़ा आया -
टिप्पणी के कारण पोस्ट ज़्यादा बेहतर हो गई है!
नागेश जी आपने कहा है -
जाकिर भाई को उनके द्वारा मांगी गयी मूल प्रति तीन बार मेल कर चुका हूँ।
--
मुझे लगता है -
ज़ाकिर भाई निरुत्तर यानि कि लाजबाव हो गए हैं!
असलियत सामने तभी आएगी जब ... ... .
निर्मल गुप्त जी को यह क्या हो गया है?
दूध का दूध
और पानी का पानी करवाने के चक्कर में
अपनी टिप्पणी में
यह क्या लिख बैठे हैं?
नागेश जी से अनुरोध है कि प्राप्त होने के बाद
"सच्ची सुंदरता" की एक प्रति
मुझे भी मेल करने की कृपा करें!
नागेश भाई,इस प्रकरण का पटाक्षेप तभी हो सकता है जब आप दोनों कहानियों को स्कैन करके एक साथ लगाएँ. पाठक खुद तय कर लेंगे कि किसकी रचना मौलिक है और किसने चुराई है। दोनों की प्रकाशित होने की तिथि अवश्य अंकित करें।
मैंने अपनी कहानी "सरस पायस" पर प्रकाशित कर दी है!
अमर उजाला में यह "इस रूप" में प्रकाशित हुई थी!
यहाँ पर जिस कहानी को जाकिर अली रजनीश बता रहे थे कि यह कहानी मेरी कहानी की कॉपी करके लिखी गई है।
उसको रवि जी ने प्रमाण के साथ सरस पायस पर प्रकाशित करके सारी स्थिति साफ कर दी है!
6 सितम्बर 1987 को तो जाकिर भाई कक्षा 4 या 5 के छात्र रहे होंगे।
जाकिर जी ने अपना स्पष्टीकरण देने के बजाय अपनी टिप्पणियाँ ही हटा दी हैं. त्रुटि तो किसी से भी हो सकती है किन्तु ऐसा पलायन तो आश्चर्यजनक है. उनकी टिप्पणियाँ मेरे मेल बाक्स में सुरक्षित हैं. उन्हें फिर से प्रकाशित किया जा रहा है.
टिप्पणी(1)
८ सितम्बर २०११ १०:०२ पूर्वाह्न
---------------------
डॉ0 ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ (Dr. Zakir Ali 'Rajnish') ने कहा…
नागेश जी, संयोग से कल शैलेन्द्र जी से आपके द्वारा सम्पादित बालिकाओं
की श्रेष्ठ कहानियां पुस्तक मिली। पुस्तक देखकर आश्चर्य हुआ कि उसमें
आपने मेरे द्वारा भेजी गयी कहानी 'सच्ची सुंदरता' के स्थान पर उसकी
'कॉपी' जैसी दूसरे लेखक की कहानी को स्थान दिया गया है, जोकि मेरी रचना
की तुलना में शिल्प एवं प्रभाव की दृष्टि से 'काफी कमजोर' प्रतीत होती
है। जबकि मुझे ध्यान है कि आपने स्वयं फोन करके उस कहानी की मांग की
थी। मैं यह समझ पाने में अस्मर्थ हूं कि आपने मंगाने के बाद उस कहानी को
संग्रह में स्थान क्यों नहीं दिया?
८ सितम्बर २०११ १०:०२ पूर्वाह्न
डॉ0 ज़ाकिर अली ‘रजनीश’की टिप्पणियाँ (2,3)
------------------------
डॉ0 ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ (Dr. Zakir Ali 'Rajnish') ने कहा…
नागेश जी, आश्चर्य का विषय है कि कहानी के लेखक को उसके प्रकाशन की मूल
तिथि याद नहीं है और आपको है। कृपया उस कहानी के प्रथम प्रकाशन की
छायाप्रति उपलब्ध कराने का कष्ट करें। इस हेतु मैं आपका हृदय से आभारी
होऊगा।
१६ सितम्बर २०११ २:०६ अपराह्न
डॉ0 ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ (Dr. Zakir Ali 'Rajnish') ने कहा…
';;;22 साल पुरानी रचना है. तब तो आपने लेखन भी आरम्भ नहीं किया था'
नागेश जी, आपके इस कमेंट से पूर्वाग्रह की बू आ रही है। गोया लगता है आप
मुझे लेकर किसी दुर्भावना से ग्रसित हैं और इसके बहाने अपने मन की भड़ास
निकाल रहे हैं।
१६ सितम्बर २०११ ४:११ अपराह्न
एक टिप्पणी भेजें