बालगीत : डा. नागेश पांडेय ' संजय '
नीले आसमान पर छा,
बादल , बादल ! जल बरसा।
देख, धरा अकुलायी है,
तुझ पर दृष्टि जमायी है,
क्यों कर रहा ढिलाई है?
गड़-गड़, गड़-गड़ कर झट आ,
बादल , बादल ! जल बरसा।
गांव-शहर, छत-छप्पर पर,
खूब बरस तू झमर-झमर
पेड़-पौधे को, धरती को
नया रूप, नव रंग दिला,
बादल , बादल ! जल बरसा।
पपिहा-चातक चहकेंगे,
मोर मस्त हो बहकेंगे
फूल बाग में बहकेंगे,
अब न तनिक तू देर लगा,
बादल,बादल ! जल बरसा।
पाएँगे सब सुख भारी,
होंगे तेरे आभारी
तुझसे बड़ा न उपकारी
तू बस निज करतब दिखला
बादल , बादल ! जल बरसा।
8 टिप्पणियां:
अनुप्रासा का अच्छा प्रयोग कर कविता को बहुत ध्वन्यात्मक बना दिया है।
शोभनम्
बहुत सुन्दर..
बहुत सुन्दर रचना
गांव-शहर, छत-छप्पर पर,
खूब बरस तू झमर-झमर
पेड़-पौधे को, धरती को
नया रूप, नव रंग दिला,
नादसौन्दर्य सराहनीय है।
गांव-शहर, छत-छप्पर पर,
खूब बरस तू झमर-झमर
पेड़-पौधे को, धरती को
नया रूप, नव रंग दिला,...बहुत सुन्दर रचना
बहुत सुन्दर कविता...
रचना पढ़कर और जलकी बरसती बूऩ्दों को देखकर अच्छा लगा रहा है!
पाएँगे सब सुख भारी,
होंगे तेरे आभारी
तुझसे बड़ा न उपकारी
तू बस निज करतब दिखला
बादल , बादल ! जल बरसा।
बहुत अच्छी लगी आपकी यह रचना |
साथ ही मेरे ब्लॉग पर आकर अपनी टिपण्णी से हौसला बढ़ने के लिए धन्यवाद् | इसी तरह स्नेह बनाये रखें और मेरे ब्लॉग में आते रहें |
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आभार |
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बहुत सुन्दर बालकविता
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