बालसाहित्य सृजन
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मंगलवार, 16 नवंबर 2010
बस
हम बच्चों को भाती बस
सुबह सुबह आ जाती बस
वि़द्यालय तक हमको भैया
मिनटों में पहुचाती बस
अगर रास्ता ऊबड़ खाबड़
झूला बन जाती है बस
बहुत बुरी लगती लेकिन जब
धक्के लगबाती है बस .
1 टिप्पणी:
अभिषेक
ने कहा…
कविता मजेदार है . बधाई .
20 नवंबर 2010 को 8:59 pm बजे
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1 टिप्पणी:
कविता मजेदार है . बधाई .
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