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मंगलवार, 10 अगस्त 2021

डॉ. नागेश पांडेय 'संजय' की कहानी 'वीर बनूँगा मैं भी...'

 वीर बनूंगा मैं भी...

नितिन को उसके नौवें जन्मदिन पर ढेरों उपहार मिले। ढेर सारे खिलौने। ढेर सारे कपड़े। लेकिन ये सब तो उसके पास पहले से ही थे न, इसलिए उसकी निगाह ...बस ....एक अलग ढंग के गिफ्ट पैक पर ही जमी थी। सबके जाते ही उसने सबसे पहले उसी को खोला। खोलने से पहले उसने मम्मी-पापा से पूछा भी, ‘अच्छा बताइए तो इसमें क्या होगा?’

मम्मी ने कहा, ‘डायरी।’

पापा बोले,‘किताब।’

हां, यह किताब ही थी। कहानियों की किताब। वीर बालक और बालिकाओं की कहानियों की किताब।

‘अरे! वाह। मैं तो इसे जरूर पढ़ूंगा।’ नितिन चहक उठा। किताब मोटी थी। कोई तीस कहानियां उसमें थीं। नितिन ने चार कहानियां तो तुरंत ही पढ़ डालीं। वह तो मम्मी ने मना कर दिया,‘अरे! अब सो भी जाओ। आराम से पढ़ना इसे।’सच पूछो तो नितिन किताब को छोड़ना नहीं चाहता था। हां, लेकिन कल सुबह स्कूल भी तो जाना था और रात भी ज्यादा हो ही चुकी थी। 

नितिन सो गया। सुबह किताब को उसने बस्ते में रखा और बस में भी दो कहानियां उसने पूरी कर लीं। फिर एक पीरियड खाली था तो तीन कहानियां और...। वाकई मजा आ रहा था। बड़ा अचरज हो रहा था। बार-बार आंखें बडी़ हो जातीं। रोंगटे खड़े हो रहे थे। कई बार तो ऐसा लगता कि वह कहानी नहीं पढ़ रहा है, बल्कि सारी घटना उसके सामने ही घटित हो रही है। मजा इसलिए भी आ रहा था क्योंकि ये कहानियां सच्ची कहानियां थीं। ऐसे बच्चों की कहानियां जो लगभग उसकी ही उम्र के थे। अरे!  दो-चार साल बड़े भी हों तो क्या, मतलब थे तो बच्चे ही। 

बाप रे ! एक बच्चा कुएं में कूद गया। ...एक बच्चे ने आग में घिरे लोगों की जान बचाई। ...एक बच्चा बाढ़ में भी न डरा। ...एक लकड़हारे के बच्चे ने जंगल में भेड़िए का सामना किया। ...एक दीदी ने पहाड़ से गिरे बच्चों को बचाया। एक बच्चे ने लुटेरों को पकड़वाया। ...मतलब कितनी कहानियां और वह भी एकदम सच। बच्चों के फोटो भी किताब में छपे थे। ऐसा नहीं कि नितिन पहली बार वीर बच्चों की कहानियां पढ़ रहा हो। उसके कोर्स में भी ऐसी कहानियां थीं। टीचर भी तो अक्सर ऐसी कहानियां सुनाते ही रहते थे। बालक भरत ने षेरों के दांत गिने थे। राम के पुत्र लवकुश ने अश्वमेघ के घोड़े को भी बांध दिया था। ...जैसी कितनी कहानियां उसने सुनी पढ़ी थीं लेकिन कभी उसे अचरज नहीं हुआ। उसे तो लगता था कि ये सब तो बस कहानियां हैं। या फिर वह सोचता था कि वह जमाना और रहा होगा। तब सब ज्यादा शक्तिशाली होते होंगे। लेकिन ये सब तो ? एक दम सामान्य से परिवारों के बच्चे। उसके ही जैसे बच्चे। भई वाह! यह तो कारनामा ही है। इसके लिए उन बच्चों को प्रधानमंत्री जी ने अवार्ड दिया। तो यह तो और बड़ी बात हुई। 

नितिन बहुत उत्साहित था। वह बार-बार सोचता कि वह ऐसा कौन सा काम करे कि उसका भी नाम बालवीरों में आए। उसे भी अवार्ड मिले। मैडम कहती हैं कि हर काम की शुरुआत छोटी होती है लेकिन धीरे-धीरे हम बड़े काम कर डालते हैं। तो अब उसे चूकना नहीं है। कहीं भी मौका मिला तो चांस मिस नहीं होगा। उसे वीर बनना है तो बनना है। 

पांच दिन में नितिन ने सारी किताब पढ़ डाली। उसमें जबरदस्त परिवर्तन भी आया। उसे लगा कि वह भी किसी से कम नहीं है। उस दिन रात में अचानक लाइट गई मगर हमेशा की तरह वह जोर से नहीं चिल्लाया, मम्मी! जल्दी आओ। डर लग रहा।

बाथरूम में मोटी छिपकली को देखकर भी वह डरा नहीं। झाड़ू उठा लाया, तीन बार हट हट हट क्या कहा कि छिपकली भागती नजर आई। 

पड़ोस के रस्तोगी अंकल के बंधे हुए झबरू कुत्ते को देखकर ही उसकी धड़कन बढ़ जाती थी मगर अब तो नितिन बेधड़क चलता चला जाता है और हमेशा उसे देखते ही भूं भूं करने वाला वह झबरू उसे चकित भाव से घूरता रह जाता है। 

एक दिन स्कूल बस खराब हुई लेकिन हमेशा की तरह नितिन इस बार चुपचाप नहीं बैठा रहा, जैसे उसे कुछ पता ही नहीं। ...अरे! बड़े बच्चे जाएंगे। धक्का लगाएंगे और चल ही पड़ेगी बस। नितिन एक झटके में उठा। अन्य बच्चों की तरह नीचे गया। ये लगाया धक्का और लो ये हुई बस स्टार्ट। 

नितिन अब काले-काले कपड़े पहने लाल आंखों वाले बाबा से भी नहीं डरता। नहीं तो जब वे दरवाजे पर भीख मांगने आते थे तो उसकी तो सिट्टी पिट्टी ही गुम हो जाती थी। 

नितिन को लगने लगा कि हां, वह भी वीर है। वह भी कारनामे कर सकता है और उसे करना है। और क्या, जब नहीं डरना है तो करना है।

एक रोज नितिन नुक्कड़ से समोसे लेने जा रहा था। उसने देखा, उसकी ही उम्र का एक लड़का छोटी सी एक लड़की को खींचता हुआ ले जा रहा है। वीरता दिखाने का यह अच्छा मौका था। बस...नितिन ने उसे जा लपका। बच्ची को छुड़ाना चाहा तो वह उलटे उसी लड़के से लिपट गई। क्यों न लिपटती? उसकी छोटी बहन जो थी। बच्ची और ज्यादा सहम गई। वह लड़का तो नितिन से भिड़ने पर आमादा हो गया। कुछ और लोग वहां आए तो वे भी नितिन को भला बुरा कहने लगे। रोती हुई बच्ची शांत होकर चुपचाप अपने भाई के साथ चली गई। 

बेचारा नितिन, उसकी तो समझ ही नहीं आ रहा था कि भला उसकी क्या गलती थी?

एक दिन इंटरवल में केजी में पढ़ने वाले एक छोटे से बच्चें का खिलौनेवाला ऐरोप्लेन लाइब्रेरी की टीनवाली छत पर जा पहुंचा। बच्चा जोरों से सुबक रहा था। नितिन ने आव देखा न ताव, लाइब्रेरी की खिड़की और रोशनदान को पकड़ते-पकड़ते छत पर जा पहुंचा। ऐरोप्लेन तो उसने नीचे फेंक दिया लेकिन अब खुद कैसे नीचे आए? यह तो बड़ी समस्या खड़ी हो गई। नीचे उतरने का तो कोई जुगाड़ ही नहीं। कभी इधर तो कभी उधर। उस पर प्रिंसिपल सर का डर। बेचारे नितिन बुरे फंसे। सारे बच्चे तमाशा देख रहे थे।

एक बच्चा हिंदी वाली शुचिता मैडम को बुला लाया। उन्होंने गेटकीपर अंकल से सीढ़ी मंगवाई। फिर बड़ी सावधानी से नितिन को उतारा गया।

मैडम को जब यह पता चला कि नितिन वीर बनने और वीरता के अवार्ड के लिए ये सब करता फिर रहा है तो पहले तो अपनी हंसी न रोक सकीं। फिर प्यार से उसे समझाया,‘तुम्हें क्या लगता है कि जिन बच्चों ने वीरता के काम किए हैं तो उसके लिए कोई सोची समझी प्लानिंग रही होगी? कम से कम अवार्ड तो उनका लक्ष्य बिल्कुल भी न रहा होगा।’

थोड़ा रुककर मैडम ने कहा,‘वीरों का काम है खतरों से खेलना। न कि जबरदस्ती खतरे मोल लेना। माना कि अभी तुम गिर जाते। चोट खा जाते। हाथ या पैर टूट जाता तो भला एक प्लास्टिक के ऐरोप्लेन के लिए इसमें कौन सी बड़ी बहादुरी होती?’

नितिन के साथ-साथ अन्य सारे बच्चे भी मैडम की बात ध्यान से सुन रहे थे। मैडम ने कहा कि बड़े होकर तुम जानोगे कि वीर कई तरह के होते हैं, जैसे दयावीर, दानवीर, युद्धवीर...आदि आदि। तुम अगर अपने मन में दीन दुखियों के प्रति दया का भाव रखते हो। उनकी सहायता करते हो तब भी तुम वीर ही हो। तुम अगर जरूरतमंदों की मदद करते हो। अपनी चीजों का मिलजुलकर प्रयोग करते हो तो भी तुम किसी वीर से कम नहीं। और वीर होने के लिए बुद्धि और बल तो बहुत ही जरूरी है। अब यह मौके पर ही पता चलेगा कि तुम्हें बुद्धि का प्रयोग करना है या बल का? वैसे वीरता की अधिकांश घटनाओं को देखकर यही समझ आता है कि बल की तुलना में बुद्धि ज्यादा काम आती है। जहां बुद्धि है, वहीं बल है।’

नितिन चहकता हुआ अचानक बोल पड़ा,‘जी, मैडम। सही कह रही हैं, ...बुद्धि के बल पर अकेला बच्चा आग में घिरे तमाम लोगों की जान बचा लेता है। ...एक बच्चा बाढ़ में फंसे कितने लोगों को सुरक्षित स्थान पर जा पहुंचाता है। अकेला बच्चा डरावने भेड़िए को भी हरा देता है। चालाकी से एक बच्चा कितने लुटेरों को पकड़वा देता है।...

नितिन आगे कुछ बोलता, इससे पहले सारे बच्चों की तालियां गूंज उठीं। मैडम ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘...और बच्चों, कभी भी अवसर आए तो तुम भी पीछे नहीं हटना। बुद्धि से काम लेते हुए वीरता की मिसाल गढ़ना। गढ़ोगे न ?’

‘बिल्कुल मैडम।’ सारे बच्चों का शोर एकदम संगीतमय हो उठा क्योंकि साथ में इंटरवल खत्म होने की घंटी भी बज उठी थी।

(बाल भारती'मासिक अगस्त 2021 अंक में प्रकाशित)

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