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गुरुवार, 24 नवंबर 2011

धीरे-धीरे बोलो



बालगीत : नागेश पांडेय ‘संजय’

कितनी जल्दी बोल रहे हो?
सुस्ताकर मुंह खोलो।
धीरे-धीरे बोलो, भैया
धीरे-धीरे बोलो।

शब्द तुम्हारे करते
गुत्थम-गुत्थी, धक्कम-पेल,
बोला करते ऐसे
जैसे-भाग रही हो रेल।
स्वर को अमर बनाने का गुण
अपने स्वर में घोलो

‘पानी लाओ को कहते हो
‘पा’ लाओ’, क्या लाऊं!
बात तुम्हारी कैसे समझूं?
कैसे अर्थ लगाऊं?
बात तुम्हारी सुन, मन कहता-
आं आं ऊं ऊं रो लो।

जल्दी जो बोला करते हैं
उनसे सब कतराते,
बहुत अधिक धीरे जो बोलें,
समय व्यर्थ  खा जाते।
एक सन्तुलित गति अपनाओ,
भाषा अपनी तोलो।

धीरे बोलो, अच्छा बोलो,
मीठा बोलो-ठानो,
जो बोलो वह समझे दूजा,
वाणी अपनी छानो।
अपनी बोली के बलबूते
सबके उर में डोलो।
धीरे-धीरे बोलो।
चित्र में : वेदांत सेंगर 

12 टिप्‍पणियां:

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत सुन्दर और शिक्षाप्रद बाल गीत...

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

मैं तो जोर से बोलती हूँ..पर अब तो सोचना पड़ेगा. प्यारी कविता..बधाई.

Chaitanyaa Sharma ने कहा…

बहुत सुन्दर गीत..

जोय प्रकाश सिंह बन्धु ने कहा…

बच्चों के लिए आपलोगों के काम को देखकर हैरान हूं। आपलोग स‌मर्पित लोग हैं। मैं तत्कालीन राजनीति पर अधिक स‌मय बर्बाद करता हूं। लेकिन अब लगता है बाल रचनाओं के लिए भी स‌मय देना चाहिए।..पढ़ने के बाद ही राय रखूंगा। वैसे आपलोग ही इस दिशा में मेरे प्रेरणा-स्रोत हैं। धन्यवाद।
-जोय प्रकाश सिंह बन्धु, कोलकाता

Vandana Ramasingh ने कहा…

बेहतरीन प्रेरक बालगीत

http://bal-sahitya.blogspot.com ने कहा…

bahut rochak. maja AA gaya.

Dr. Vimla Bhandari ने कहा…

Aapka blog bahut sunder aur rochak hai.

Dr. Vimla Bhandari ने कहा…

bahut rochak. maja AA gaya.

रावेंद्रकुमार रवि ने कहा…

बढ़िया बालगीत!
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मुस्कानों की निश्छल आभा!

Dr.Deshbandhu "Shahjahanpuri" ने कहा…

बढ़िया बालगीत!

Dr.Deshbandhu "Shahjahanpuri" ने कहा…

बढ़िया बालगीत!

Balveer Sharma ने कहा…

Happy New Year