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सोमवार, 9 मई 2011

चिलचिल गर्मी


बाल कविता : डॉ. नागेश पांडेय 'संजय'
चिलचिल गर्मी तेरा
बड़ा भयंकर रूप।
सूखी बंजर धरती,
उड़ा रही है रेत।
नहीं रही हरियाली,
पीले पड़ गये खेत।
अकुलाये पशु-पक्षी,
सूखे पोखर-कूप।

गरम हवा बहती है,
चलती सर-सर लू,
कड़क देख सूरज की,
रहा पसीना चू।
बुरा हाल है सबका,
हिटलर जैसी धूप।

कूलर पंखे ने भी, 
बदल दिया है रंग।
गरम हवा देते हैं,
होश किए हैं दंग।
प्यास नहीं है बुझती,
ओंठ रहे हैं सूख।
चित्र साभार गूगल सर्च 

6 टिप्‍पणियां:

Chaitanyaa Sharma ने कहा…

आहा ... बढ़िया है चिलचिल गर्मी की कविता .....

रश्मि प्रभा... ने कहा…

waakai हिटलर जैसी धूप।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

मौसम के अवुकूल बाल रचना!
"प्यास नहीं है बुझती,
ओंठ रहे हैं सूख।"
आजकल उत्तर भारत में भी यही हाल है!

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना..सचमुच आजकल तो ये ही हालात हैं.

Unknown ने कहा…

वाह जी . बहुत प्यारी है . कविता

Unknown ने कहा…

रोचक और बेहद ही मजेदार गीत