बाल कविता : डॉ. नागेश पांडेय 'संजय'
चिलचिल गर्मी तेरा
बड़ा भयंकर रूप।
सूखी बंजर धरती,
उड़ा रही है रेत।
नहीं रही हरियाली,
पीले पड़ गये खेत।
अकुलाये पशु-पक्षी,
सूखे पोखर-कूप।
गरम हवा बहती है,
चलती सर-सर लू,
कड़क देख सूरज की,
रहा पसीना चू।
बुरा हाल है सबका,
हिटलर जैसी धूप।
कूलर पंखे ने भी,
बदल दिया है रंग।
गरम हवा देते हैं,
होश किए हैं दंग।
प्यास नहीं है बुझती,
ओंठ रहे हैं सूख।
6 टिप्पणियां:
आहा ... बढ़िया है चिलचिल गर्मी की कविता .....
waakai हिटलर जैसी धूप।
मौसम के अवुकूल बाल रचना!
"प्यास नहीं है बुझती,
ओंठ रहे हैं सूख।"
आजकल उत्तर भारत में भी यही हाल है!
बहुत सुन्दर रचना..सचमुच आजकल तो ये ही हालात हैं.
वाह जी . बहुत प्यारी है . कविता
रोचक और बेहद ही मजेदार गीत
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