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रविवार, 3 अप्रैल 2011

मेरे मामा



पतंगबाज़ों की गोंददानी
बालगीत :नागेश पांडेय 'संजय '

जैसे मेरे, नहीं किसी के वैसे,
सबको मामा मिलें हमारे जैसे।

खूब हमारे साथ खेलते-खाते,
सैर कराने भी हमको ले जाते।
याद उन्हें कविताएं प्यारी-प्यारी,
उनके पास कथाएं ढेरों सारी।
घूम-घूम कर किस्से किए इकट्ठे,
दाँतों तले दबे उंगली, हाँ! ऐसे!

खेलें बालीबाल, कबड्डी, लूडो,
उछले, कूदें, हमें सिखाएं जूडो।
लड़ना-भिड़ना उन्हें नहीं भाता है,
एक-एक ग्यारह करना आता है।
जो माँगू सो हँसकर सदा दिलाते,
पर जाने क्यों कभी न देते पैसे?

देखा नहीं कभी उनको झुँझलाते,
जहां बैठ जाते हैं, खूब हँसाते।
दिखने में है सीधे-साधे फक्कड़
मगर बुद्धि से पक्के लाल बुझक्कड़।
सदा नियम से बँधकर रहते, करते
सारे के सारे ही काम समय से।
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चित्र में : बच्चों के लोकप्रिय ब्लाग 'सरस पायस' के संपादक रावेंद्र कुमार रवि

4 टिप्‍पणियां:

लक्ष्मी नारायण लहरे "साहिल " ने कहा…

SUNDAR RACHANAA,HARDIK BADHAI ...

रावेंद्रकुमार रवि ने कहा…

बहुत सुंदर बालगीत!
पढ़कर मन प्रसन्न हो गया!

Chaitanya Sharma ने कहा…

सुंदर बालगीत.....बहुत ही अच्छा

बेनामी ने कहा…

वाह ! बहुत ही प्यारी कविता . आपको बधाई .