ठंड लग रही
बाल गीत : डा. नागेश पांडेय 'संजय'
ओ अम्मा ! दो मुझे रजाई ,
ठंड लग रही है .
देखो गठरी बना हुआ मैं
कंबल के अंदर .
ठिठुर रहा है , मेरा सारा
तन थर-थर-थर .
और दाँत कर रहे लड़ाई ,
ठंड लग रही है .
चुपके से तुमको बतला दूँ ,
नाक बह रही है .
कल सर्दी में घूमा था मैं ,
राज कह रही है .
हालत है मेरी चकराई ,
ठंड लग रही है .
मुझको झट-पट-चट .
पलक झपकते पी जाऊँ मैं ,
उसको गट-गट-गट.
उस से रहत मिले सवाई ,
ठंड लग रही है .
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चित्र में कुबेर मिश्र
4 टिप्पणियां:
बड़ी मजेदार ....प्यारी है ठण्ड की कविता.....
अभी से बच्चे को अदरक वाली चाय पिला रहे हैं? बढिया है भाई।
मुझे भी ठण्ड लग रही है
बाल-इच्छाओं को पहचानना और उसे शब्द देना अत्यंत संवेदनशील के बस की ही बात है।
आनंद वर्षा करता गीत "ठण्ड लग रही है"
वाह वाह !! बहुत सुखकर !!!
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