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मंगलवार, 19 फ़रवरी 2019

कविता "वसंत ऋतु" : डॉ. नागेश पांडेय 'संजय'

लो, वसंत की ऋतु आई है।

लगे परी-सी धरती रानी,
देख इसे होती हैरानी !
चहक उठी है, महक उठी है,
बहक उठी है प्रकृति सुहानी।
पेड़ झूमते हैं मस्ती में,
डाली-डाली बौराई है।
लो, वसंत की ऋतु आई है।

फूलों से लद गए बगीचे,
खुश्बू मन का आँगन सींचे।
यो लगता है गगन धरा पर,
अंजुरि भर-भर ख़ुशी उलीचे।
अहा ! जादुई इस मौसम का,
रंग-ढंग सब सुखदाई है।
लो, वसंत की ऋतु आई है।

झूम रही सरसों मतवाली,
नाच रही सरसों की बाली,
नन्हे-मुन्ने पौध चने के,
हँस-हँस बजा रहे हैं ताली।
कोयल भैया ने कूSS कूSS कूSS ,
मीठी-सी लोरी गाई है।
लो, वसंत की ऋतु आई है।

2 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (20-02-2019) को "पाकिस्तान की ठुकाई करो" (चर्चा अंक-3253) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Onkar ने कहा…

बहुत बढ़िया